Lekhika Ranchi

Add To collaction

काजर की कोठरी--आचार्य देवकीनंदन खत्री


काजर की कोठरी : खंड-5

रात दो घंटे से कुछ ज्यादे जा चुकी है। लालसिंह अपने कमरे में अकेला बैठा कुछ सोच रहा है। सामने एक मोमी शमादान जल रहा है तथा कलम-दवात और कागज भी रखा हुआ है। कभी-कभी जब कुछ खयाल आ जाता है, तो उस कागज पर दो-तीन पंक्तियाँ लिख देता है और फिर कलम रखकर कुछ सोचने-विचारने लगता है। कमरे के दरवाजे बंद हैं और पंखा चल रहा है, जिसकी डोरी कमरे से बाहर एक खिदमतगार के हाथ में है। यकायक पंखा रुका और लालसिंह ने सर उठाकर सदर दरवाजे की तरफ देखा। कमरे का दरवाजा खुला और उसने अपने पंखा खिदमतगार को हाथ में एक पुर्जा लिए हुए कमरे के अंदर आते देखा।

खिदमतगार ने पुर्जा लालसिंह के आगे रख दिया जिसने बड़े गौर से पुर्जा पढ़ने के बाद पहिले तो नाक-भौं चढ़ाया तथा फिर कुछ सोच -विचार कर खिदमतगार से कहा, ” अच्छा, आने दे।” इतना कह उसने वह कागज जिस पर लिख रहा था, उठाकर जेब में रख लिया।

खिदमतगार चला गया और उसके बाद ही सूरजसिंह ने कमरे के अंदर पैर रखा। उन्हें देखते ही लालसिंह उठ खड़ा हुआ और मजबूरी के साथ जाहिरी खातिरदारी का बर्ताव करके साहब-सलामत के बाद अपने पास बैठा लिया। इस समय सूरजसिंह अपनी मामूली पौशाक तो पहिरे हुए थे मगर ऊपर से एक बड़ी स्याह चादर से अपने को ढाँके हुए थे।

लालसिंह: आज तो आपने मुझ बदनसीब पर बड़ी कृपा की।

सूरजसिंह: (मुस्कराते हुए) बदनसीब कोई दूसरा ही कमबख़्त होगा, मैं तो इस समय एक खुशनसीब और बुद्धिमान आदमी की बगल में बैठा हुआ बातें कर रहा हूँ, जिससे मिलने के लिए आज चार दिन से सोच-विचार में पड़ा हुआ था।

लालसिंह: (कुछ चौंककर) ताज्जुब है कि आप एक ऐसे आदमी को खुशनसीब कहते हैं, जिसकी एकलौती लड़की ठीक ब्याह वाले दिन इस बेदर्दी के साथ मारी गई है कि जिसकी कैफियत सुनने से दुश्मन को भी रंज हो, और साथ ही इसके जिसके समधी तथा दामाद की तरफ से ऐसा बर्ताव हुआ हो, जिसके बर्दाश्त की ताकत कमीने से कमीना आदमी भी न रख सकता हो ! .

सूरजसिंह: यह सब आपका भ्रम है और जो कुछ आप कह गए हैं, उसमें से एक बात भी सच नहीं है।

लालसिंह: (आश्चर्य से) सो कैसे? क्या सरला मारी नहीं गई? और क्या उस समय आपके हरनंदन बाबू बाँदी रंडी के साथ खुशियाँ मनाते हुए.. ।

सूरजसिंह: (बात काट के) नहीं, नहीं, नहीं! ये दोनों बातें झूठ हैं और आज यही साबित करने के लिए मैं आपके पास आया हूँ।

लालसिंह: कहने के लिए तो मुझे भी लोगों ने यही कहा था कि सरला के मरने में शक है, मगर बिना किसी तरह का सबूत पाए ऐसी बातों का विश्वास कब हो सकता है!

सूरजसिंह : ठीक है, मगर मैं बिना किसी तरह का सबूत पाए ऐसी बातों पर जोर देनेवाला आदमी भी तो नहीं हूँ।

लालसिंह : तो क्या किसी तरह का सबूत इस समय आपके पास मौजूद भी है, जिससे मुझे विश्वास हो जाए कि सरला मारी नहीं गई और हरनंदन ने जो कुछ किया वह उचित था?

सूरजसिंह: ‘जी हाँ।’ इतना कहकर सूरजसिंह ने एक पुर्जा निकालकर लालसिंह के आगे रख दिया। लालसिंह ने उस पुर्जे को बड़े गौर से पढ़ा और ताज्जुब में आकर सूरजसिंह का मुँह देखने लगा।

सूरजसिंह: कहिए, इन हरूफों को आप पहचानते हैं?

लालसिंह: बेशक! बहुत अच्छी तरह पहचानता हूँ!

सूरजसिंह : और इसे आप मेरी बातों का सबूत मान सकते हैं या नहीं?

लालसिंह: मानना ही पड़ेगा, मगर सिर्फ एक बात का सबूत।

सूरजसिंह: दूसरी बात का सबूत भी आप इसी को मानेंगे, मगर उसके बारे में मुझे कुछ जुबानी भी कहना होगा।

लालसिंह: कहिए, कहिए, मैं आपकी बातों पर विश्वास करूँगा, क्योंकि आप प्रतिष्ठित पुरुष हैं और निःसंदेह आपको मेरी भलाई का खयाल है। इस समय यह पुर्जा दिखाकर आपने मेरे साथ वैसा ही सलूक किया, जैसा समय की वर्षा का सूखी हुई खेती के साथ होता है।

सूरजसिंह: यह सुनकर आपको ताज्जुब होगा कि बाँदी के पास हरनंदन के बैठने का कारण यह पुर्जा है। इस तत्त्व को बिना जाने ही लोगों ने उसे बदनाम कर दिया। यों तो आपको भी उसके मिजाज का हाल मालूम ही है, मगर ताज्जुब है कि आप भी बिना सोचे-विचारे दुश्मनों की बातों पर विश्वास कर बैठे!

लालसिंह : बेशक ऐसा ही हुआ और लोगों ने मुझे धोखे में डाल दिया। तो क्या यह पुर्जा हरनंदन के हाथ लगा था?

सूरजसिंह: जी हाँ, जिस समय महफिल में नाचने के लिए बाँदी तैयार हो रही थी, उसी समय उसके कपड़े में से गिरे हुए इस पुर्जे को हरनंदन के नौकर ने उठा लिया था। वह नौकर हिंदी अच्छी तरह पढ़ सकता है अस्तु, उसने जब यह पुर्जा पढ़ा तो ताज्जुब में आ गया। यह पुर्जा तो उसने फौरन लाकर अपने मालिक को दे दिया और उसी समय महफिल का रंग बदरंग हो गया, जैसा कि आप सुन चुके हैं। अब आप ही बताइए कि इस पुर्जे को पढ़ के हरनंदन को सब के पहिले क्या करना उचित था?

लालसिंह : (कुछ सोचकर) ठीक है, उस समय बाँदी के पास जाना ही हरनंदन को उचित था, क्योंकि वह नीति-कुशल लड़का है, इस बात को मैं खूब जानता हूँ।

सूरजसिंह : केवल उसी दिन नहीं, बल्कि जब तक हमारा मतलब न निकले तब तक हरनंदन को बाँदी से मेल रखना ही चाहिए।

लालसिंह : ठीक है, मगर यह काम तो हरनंदन के अतिरिक्त कोई और आदमी भी कर सकता है।

सूरजसिंह : बेशक कर सकता है, मगर वही जिसे उतनी ही फिक्र हो जितनी हरनंदन को। इसके अतिरिक्त बाँदी को जो आशा हरनंदन से हो सकती है, वह किसी दूसरे से कैसे हो सकती है?

   1
0 Comments